Saturday, February 1, 2014

HIGHWAY (2014): MUSIC REVIEW




ऐसा लगभग हर बार होता है , ए  आर रहमान की कंपोज्ड फ़िल्म का म्यूजिक रिलीज़ होता है ,  हम पहली दफे  गाने सुनते है और सोचते है ' यार इस बार रहमान चूक गये  ,  क्या तो भी गाने बनाये है ' ' रहमान में अब वो रोज़ा रंगीला वाली बात नहीं रही'।  रहमान के पक्के से पक्के दीवाने भी इस फिनोमिना से नहीं बच पाते। ये हर बार सबके साथ होता है , चाहे "ताल" हो "गुरु" हो " जाने तू या जाने ना " हो या फिर " रॉकस्टार " हो।   रहमान का म्यूजिक पहली बार बेतुका और अजीब ही  लगता है।  लेकिन जैसे जैसे हम सुनते जाते है वैसे वैसे रहमान की  कम्पोज़िशंस का जादू चढ़ता जाता है।  और फिर वो कम्पोज़िशंस  हमारी परमानेंट ट्रैक लिस्ट में शामिल हो जाती  है।  रहमान प्रिडेक्टिबल नहीं है , इसीलिए उनका हर नया एल्बम उनके संगीत के नए आयामों को खोलता है।  रहमान खुद इस बात को स्वीकार करते है कि कंपोजर के तौर पर वो हर ३ साल में खुद को नया और अलग पाते है।

21 फेब्रुअरी को रिलीज़ होने वाली  हाईवे इम्तिआज़ अली के द्वारा निर्देशित फ़िल्म है जिसमे ए  आर रहमान ने म्यूजिक दिया है और इरशाद कामिल ने गानो के बोल लिखे है।  इसके पहले रहमान इम्तिआज़ और इरशाद  की त्रिमूर्ति २०११ में रॉकस्टार में साथ आयी थी जिसके सारे गाने सूपर हिट थे।  ज़ाहिर  सी बात है कि हाईवे के संगीत को लेकर लोगो कि उम्मीदें बहुत ऊँची थी और रहमान इम्तिआज़ और इरशाद की ये तिकड़ी  अपने मुरीदों की उम्मीदों पर सौ फीसदी खरी उतरी है ।  हाईवे का म्यूजिक 24 जेनुअरी को रिलीज़ हो गया था लेकिन उसका रिव्यु लिखने के पहले ये ज़रूरी था कि फ़िल्म की कहानी के बैकड्रॉप में रहमान कि कम्पोज़िशंस का बेसिक आर्किटेक्ट समझ लिया जाए।

इम्तिआज़ अली नई पीढ़ी के फ़िल्मकार है , 'लव आजकल' 'जब वी मेट' और  ' रॉकस्टार'  देखकर ये बात समझ आजाती है कि उन्हें आज पीढ़ी के टेस्ट और रुझान कि ज़बरदस्त समझ है साथ ही उन्हें  अपने कंपोजर से सर्वश्रेस्ठ म्यूजिक निकलवाने में भी महारथ हांसिल है।  हाईवे को लेकर इम्तिआज़ शुरू से क्लियर थे कि रहमान इसके लिए अपरिहार्य है।  इम्तिआज़ अली को भी ये पता है कि अगर कोई संगीतकार जेन -X के लिए सबसे मुफीद है तो वो रहमान ही है।  हाईवे के संगीत की एक और खास बात है कि इसमें सिर्फ एक गाना सुनीधि चौहान जैसी स्थापित और पुरानी गायिका ने गाया है , बाकी सारे गाने यंग लड़कियों ने गाये है।  " नूरां सिस्टर्स" " ज़ेब " "जोनिता गांधी" "स्वेता पंडित " " सुवी  सुरेश "  " लेडी काश और क्रिसी " ये सब लड़कियां 'यू ट्यूब' और कोक स्टूडियो जनरेशन की कलाकार है। ये सब सिंगर्स आज की जनरेशन को रिप्रेजेंट करती है।  पुरे एल्बम में सिर्फ 2 गाने मेल वॉइस में है और दोनों रहमान ने खुद गाये है ,  बाकि सारे गाने फीमेल वॉइस में है साफ़ है कि फ़िल्म आलिया भट्ट के किरदार के आसपास घूमती है।  एल्बम में कुल 9 साउंड ट्रैक्स है जिसमे से एक " पटाखा गुड्डी " मेल और फीमेल वर्शन में है जबकि " इम्प्लोसिव साइलेंस " में सिर्फ आलाप है।

माही वे - माही वे गाना इस एल्बम कि सबसे सरल कम्पोजीशन है इसलिए ये गाना पहली बार सुनकर ही  अच्छा लगने लगता है। इस गाने में रहमान ने इंट्रूमेंट्स का उपयोग भी बहोत कम किया है।  इरशाद कामिल ने इस गाने को मुखड़ा -अंतरा की गीत शैली में न लिखकर नज़्म शैली में लिखा है।  रहमान की रूहानी और हाई पिच वाली गायकी इस गाने को सूफियाना टच देती है। इस गाने के शुरू में गिटार फैमिली के एक इंस्ट्रूमेंट उकुलेले का उम्दा यूज़ किया गया है।  रिलीज़ होने के एक दिन के भीतर ही ये गाना I-TUNES में नंबर दो पर आ गया था।

कहाँ हूँ  मै - ये गाना कनाडा बेस्ड आर्टिस्ट जोनिता गांधी ने गाया है जो इसके पहले चेन्नई एक्सप्रेस का टाइटल सांग भी गा  चुकी है।  जोनिता गांधी, यू ट्यूब पे मशहूर पियानिस्ट  आकाश गांधी के साथ बॉलीवुड गानो के कवर वर्शन गाती है और इनके विडिओज़  लाखों लोगों द्वारा देखे जाते है। आजकल जोनिता सोनू निगम की कॉन्सर्ट ट्रूप का हिस्सा है.   जोनिता कि आवाज़ सुनकर लगता है कि जैसे वो एक ओपेरा सिंगर है जिसे  भारतीय शास्त्रीय संगीत की भी गेहरी समझ है।  कहाँ हूँ मै गाना जोनिता कि सधी हुई और ताज़ा आवाज़ के कारण आपको एक अलग दुनिया में ले जाता है।  एक ऐसी दुनिया जहाँ पहुच  के मन में यही ख्याल आता है कि " कहाँ हूँ मै ".

पटाखा गुड्डी( फीमेल वर्शन )  - "पटाखा गुड्डी " पंजाब के लोकगीत शैली में कंपोज्ड एक बेहतरीन गाना है जिसे गाने के लिए " नूरां बहनो " से बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता था। ज्योति और सुल्ताना नूरां पंजाबी सूफी गायन में उभरता नाम है , पिछले साल COKE MTV STUDIO में परफॉर्म करने के बाद से  इन्हे राष्ट्रीय ख्याति मिली और अब रहमान के लिए गाकर इन्होने अपने लिए संभावनाओ के नए द्वार खोल लिए।पंजाबी लोक गीत की  बीट्स और उसके साथ नूरां सिस्टर्स की ज़ोरदार आवाज़ मिलकर इस गाने को एक अलग एहसास देते है।  गाने में बांसुरी का भी बेहद खूबसूरत उपयोग लिया गया है जो रहमान के रेगुलर फ्लूटिस्ट नवीन कुमार ने बजायी है। मेरे हिसाब से इस गाने का असली पंच गाने के आखिरी में रहमान के द्वारा निकाली  आवाज़ है जो इस फॉल्क सांग को मॉडर्न और अरबनाइट टच  देती है।

सुहा साहा - ये एक लोरी है जिसे आलिया भट्ट और ज़ेब बंगाश ने गाया है।  गाने के बोल शायद पंजाबी में है।  सुहा साहा का मतलब होता है " लाल खरगोश" । ज़ेब और हानिया पाकिस्तान की मशहूर गायिकाओ की जोड़ी है , ज़ेब मूलतः पश्तून है और उनकी आवाज़ में उम्र और वज़न दोनों है , उम्र इसलिए है क्योकि वो 8 साल की उम्र से गा  रही है और अब एक मंझी फनकार बन गयी है।   ज़ेब और हानिया २००९ और २०१० में COKE STUDIO में परफॉर्म कर चुकी है।  मगर इस गाने में ज़ेब से ज्यादा प्रॉमिनेंट आलिया भट्ट है , जिन्होंने पहली बार गायकी में हाथ आज़माया है।  ये रहमान का है विज़न है जिसने ये  जान लिया कि इस लोरी में यथार्थ और प्रभाव लेन के लिए आलिया भट्ट ही सही है।  ये लोरी रहमान के पुराने गानो की याद दिलाती है।  केबा जर्मिआह की गिटार  STRUMMING कमाल की  है।

हीरा - ये इस एल्बम का मेरा सबसे पसंदीदा गाना है , गाने के लफ्ज़ जानने के बाद से और ज़यादा अच्छा लगने लगा।  ये असल में  "कबीर की  साखिया " से लिए गए ३ दोहे है। रहमान रूहानी और सूफियाना अल्फ़ाज़ों को जिस नाज़ुकता से और जिस नफ़ाज़त से कंपोज़ करते है वो कोई और नहीं कर सकता।  पंद्रहवी शताब्दी में लिखे  दोहे को इक्कीसवी सदी  के एक ऑस्कर विजेता कंपोजर ने  संगीतबद्ध किया  है  और एक ऐसा गाना बना है जो बरसो सुना जाएगा। श्वेता पंडित तेलगु फिल्मो की गायिका है और रहमान के लिए पिछले ५-६ सालो से गा रही है।  गाने में वायलिन जिस तरह से बजा है वो जगजीत सिंह की ग़ज़लों की याद दिलाता है।  ये दोहे अगर जगजीत सिंह से गवाए गए होते तो ये कम्पोजीशन अमर हो जाती।

पटाखा गुड्डी( मेल वर्शन )- पटाखा गुड्डी मेल वर्शन रहमान ने खुद गया है।  फीमेल वर्शन जहाँ  लोक संगीत बेस्ड है , मेल वर्शन में क़व्वाली का टच है।  रहमान की ट्रेडमार्क " प्रोग्रेसिव कोर्डिंग " का एक बेहतरीन मुज़ाहिरा है ये गाना।  बेस गिटार और पावरफुल बीट्स इस गाने की एनर्जी को कॉम्पलिमेंट करते है।  गाना सुनकर साफ़ लगता है कि पंजाबी अल्फ़ाज़ों के इस गाने को सही तलफ्फुज़ से गाने के लिए रहमान को कितनी मेहनत करना पढ़ी होगी।

तू कुजा मन कुजा -  इरशाद कामिल जालंधर यूनिवर्सिटी से उर्दू पोएट्री में पीएचडी है।  उर्दू के अतिरिक्त इन्हे फ़ारसी और अरबी की भी अच्छी समझ है।  इरशाद ने अमीर खुसरो की फ़ारसी - बृज रचनाओ से प्रेरित होकर " रांझणा " में 'तुम मन शुदी लिखा था " और ' रॉकस्टार ' में  कुरान से " कुन फाया कुन " भी उठाया था।  इस बार फिर उन्होंने फ़ारसी से " तू कुजा मन कुजा " लिया है जो दरअसल खुदा से इबादत में कहा जाता है और जिसका मतलब है  " तुम कहाँ और  मै कहाँ" ।  शुरू के इन चार अल्फ़ाज़ों के अलावा ये गाना ठेठ हिंदी है।  गाना सुनकर लगता है कि ये कोई प्रार्थना है।  सुनिधि चौहान ने अर्से बाद रहमान के लिए गया है।  सुनिधि की गायकी एफर्टलेस है , हाई पिच पे बने इस गाने को एक जैसी ग्रेविटी के साथ गाना सिर्फ सुनिधि चौहान के बस की  ही बात है।

वाना मैश अप ? -  हाईवे के बाकी सारे गाने अगर पूर्व है तो ये गाना पश्चिम है। ये गाना फ़िल्म में आलिआ भट्ट की अप्वर्डली मोबाइल लाइफस्टाइल को पोट्रे करता है।  लेडी काश और क्रिसी सिंगापुर बेस्ड रैपर और कंपोजर है।  इन्होने " रोबोट "  फ़िल्म में  " नैना मिले " और इसके तमिल/तेलुगु वर्शन भी गाये है।  इस किस्म के गानो में एक अलग किस्म का ऐ आर रहमान निकल के सामने आता है , ये गाना रहमान के तकनीकी कौशल का नतीज़ा है। इस गाने की तीसरी गायिका सुवी सुरेश है जो साउथ में MTV के विकल्प SS म्यूजिक की खोज है।

इम्प्लोसिव साइलेंस - इम्प्लोसिव साइलेंस इंस्ट्रुमेंटल ट्रैक है। नाम के ठीक उलट इस गाने में एक अजीब सा शोर है , ये शोर बाहरी दुनिया का नहीं है भीतर का है।  अंदर की बैचैनी और छटपटाहट की आवाज़ है ये ट्रैक।  बीच बीच में कुछ आलाप है जिन्हे जोनिता गांधी ने किया है।

"हाईवे" इम्तिआज़ अली का  एम्बीशियस प्रोजेक्ट है जिसमे संगीत का बड़ा हिस्सा है।  रहमान ने अपना काम बखूबी किया है और फ़िल्म का संगीत रहमान की प्रतिष्ठा के अनुरूप है।  रहमान का म्यूजिक एकदम से क्लिक नहीं करता।  नसरीन मुन्नी कबीर कहती है रहमान का संगीत एक कड़वी दवाई कि तरह है जो खाते वक़्त तकलीफ देता है लेकिन फिर सारी ज़िन्दगी असर करता है।  पिछले साल " जब तक है जान " के साथ " खिलाडी 786 " आयी थी , " जब तक है जान " के गाने आज भी  जहाँ सुनने को मिलते है लोग ठहर जाते है वंही " खिलाडी 786 " के गानो पे लोगो ने शादियों  में खूब डांस किया और फिर भूल गए।  शादी की घोड़ी और लम्बी रेस के घोड़ों में येही अंतर है।













8 comments:

  1. None of the songs are good. the heavy appreciation, if any is surely 'prepaid'

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    1. Hi shashi sir, i think you are still in 80's:-)

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    2. Shshi S Sir , there is no accounting for taste, still, I am sure u will love listening to Highway songs after a few months.

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  2. Rahman saab film ka best song khud zaroor gaate hai...

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  3. Rahman saab film ka best gaana zaroor gaate hai...

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