Tuesday, February 18, 2014

आज की स्कीम




'सोम-रस' की कविता  

मैकदे में खिचती कभी लकीर नहीं 
यहाँ कोई खादिम नहीं कोई पीर नहीं 
हम -प्याला हुए बैठे है हबीब और रक़ीब 
आस्तीनो में ख़ंजर हाथों में शमशीर नहीं 
बेफिक्री के धुंए का ग़ुबार फैला है अंधेरो में 
चेहरे पे शिकन माथे पे कोई लकीर नहीं 

- हिमांशु जोशी 

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