Wednesday, February 12, 2014

गुलज़ारी कीड़ा

पिछले वैलेंटाइन पे
तुमने गुलाबों के
जो फूल मुझको दिए थे
मै उन्हें सींचती रही , इस आस से
कि वो महकते रहेंगे
खिलते रहेंगे
हर दिन ताज़े गुलाबो से
पर फकत चार दिनों में जब
लगे मुरझाने गुलाब
और हफ्ते भर में
सुख गए और बिखरने लगे
छूने भर से
तो मैंने उन्हें कुछ यूं सहेजा
उन्हें हाथों से मसल कर
मिलाकर यादों की चाशनी
मैंने उनका गुलकंद बना लिया


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