Friday, February 28, 2014

रौनक़

"रौनक " - कपिल सिब्बल की कविताओ का संकलन , जिसे ए  आर रहमान ने संगीतबद्ध किया है।  "किस्मत से"  इसका पहला ट्रैक है।  

Thursday, February 27, 2014

भोले आलू - The Humble Potatoes

भोले आलू - The Humble Potatoes 




हर - हर महादेव।   सभी को शिवरात्रि महापर्व की हार्दिक शुभकामनाये।  आज सभी शिव भक्ति में   लीन रहेंगे और सात्विक भोजन और फलाहार करेंगे।  पेश है एक ऐसी उपवासी  डिश , जो बनाने में मैगी जितनी आसान है और बेहद सात्विक और स्वादिष्ट भी।

2 लोगों की सर्विंग के हिसाब से

सामग्री -
मीडियम  साइज़ के उबले हुए आलू -6
रोस्ट की हुई  मूँगफली - 50 ग्राम
बारीक कटी हरी मिर्च - 2
शुद्ध घी - 25 ग्राम
जीरा - 1 टीस्पून
पिसी चीनी - 1 टीस्पून
नमक - स्वादानुसार ( उपवास के लिहाज़ से सेंधा नमक - Rock Salt -ज्यादा मुफीद रहता है ) 
हरा धनिया , नीबू और दही 

बनाने का तरीका -

उबले हुए आलू को मीडियम साइज़ के चौकोर टुकड़ो में काट लें।  कढ़ाई में घी डालकर , उसमे जीरा और हरी मिर्च को तड़का लें।  इसके बाद उसमे आलू डालकर धीमी आंच पर कुरकुरे होने तक रखे।  बीच -बीच में आलुओं को चलाते रहे।  जब आलू कुरकुरे होकर हल्के सुनहरे रंग के होने लगे तब उसमे मूँगफली के दानो को क्रश करके डालें और साथ में नमक पिसी चीनी डालकर एक मिनट  और चलाए।  तैयार है "भोले आलू " 

बारीक कटे हुए हरे धनिये से गार्निश करे और दही , नीबू के साथ सर्व करें।  













Wednesday, February 26, 2014

RUMI-1



Let the beauty we love be what we do.

There are hundreds of ways to kneel and kiss the ground


रूमी की लिखी ये दो पंक्तियाँ कितनी गेहरी है।  वैसे तो रूमी का पूरा साहित्य ही अलौकिक और रहस्यमय् है। मगर इन दो पंक्तियों में जो दर्शन है वो टाइम टेस्टेड है।   हमारे आसपास मौजूद हर शह खूबसूरत है , हर काम अच्छा है।  लेकिन जो भी किया जाए ,  उसे शिद्दत से किया जाए।  और वही काम  किया जाए जिसका  जूनून हो। गोयाकि जब हम वही करेंगे जिसका हमें जूनून है तो फिर हम उसमे खुद को निसार कर देंगे , झोंक देंगे और ये ठीक वैसे ही रहेगा जैसे खुदा की इबादत करना।  सजदा करना।

जिस बात को आज बड़े बड़े मेंटर्स और मैनेजमेंट थिंकर्स बोलते है वह बात रूमी आज से लगभग 800 साल पहले बोल गए। चेतन भगत के " फाइव पॉइंट समवन " और राजकुमार हीरानी की  " थ्री इडियट्स " में भी यही मेसेज था।  

बहरहाल , आज ये कविता आज  इसलिए याद आ गयी क्योकि कुछ दिनों में " रौनक़ " नाम से  कपिल सिब्बल ( वकील  एवं  राजनेता ) की लिखी कविताओ का एक म्यूजिकल एल्बम रिलीज़ होने वाला है , उसके प्रोमो के शुरू में रूमी की ये दो पंक्तियाँ दिखायी जा रही है। कपिल सिब्बल साहब ने तो जो भी काम किया है आला दर्ज़े का ही किया है।  वकील भी उच्च दर्ज़े के और राजनीतिज्ञ  भी प्रथम पंक्ति के।  निस्न्देह वो कवी भी बेहतरीन ही होंगे।  इस एल्बम को कंपोज़ ऐ आर रहमान ने किया है. 

यम मारो यम Feasible Ideaz..Funtastic Food

ये मेरे नए ब्लॉग का नाम है। इसका URL  http://foodmatics.blogspot.in है।  YMY एक Multi Admin Blog रहेगा जिस पर मै और कुछ दूसरे ऑथर्स भी अपनी पोस्ट डालेंगे।  YMY पर हम  खाने पीने से संबधित दिलचस्प जानकारियां और आसानी से बन सकने वाली रेसिपीज़ डालते रहेंगे।  

कृपया जुड़े रहिएगा।  
http://foodmatics.blogspot.in/

Tuesday, February 18, 2014

आज की स्कीम




'सोम-रस' की कविता  

मैकदे में खिचती कभी लकीर नहीं 
यहाँ कोई खादिम नहीं कोई पीर नहीं 
हम -प्याला हुए बैठे है हबीब और रक़ीब 
आस्तीनो में ख़ंजर हाथों में शमशीर नहीं 
बेफिक्री के धुंए का ग़ुबार फैला है अंधेरो में 
चेहरे पे शिकन माथे पे कोई लकीर नहीं 

- हिमांशु जोशी 

Wednesday, February 12, 2014

गुलज़ारी कीड़ा

पिछले वैलेंटाइन पे
तुमने गुलाबों के
जो फूल मुझको दिए थे
मै उन्हें सींचती रही , इस आस से
कि वो महकते रहेंगे
खिलते रहेंगे
हर दिन ताज़े गुलाबो से
पर फकत चार दिनों में जब
लगे मुरझाने गुलाब
और हफ्ते भर में
सुख गए और बिखरने लगे
छूने भर से
तो मैंने उन्हें कुछ यूं सहेजा
उन्हें हाथों से मसल कर
मिलाकर यादों की चाशनी
मैंने उनका गुलकंद बना लिया


Tuesday, February 11, 2014

ॐ मेरे आका

फुर्सत में बैठा इंसान बिला वजह खोजी और बुद्धिजीवी होने का प्रयास करता है।  आज घर में निठल्ले बैठे -बैठे पिस्ते के इस ज़िपर  पाउच पर नज़र पढ़ी।  ॐ मेरे आका अमेरिकन USA रोस्टेड  एन साल्टेड पिस्ता 


दिल्ली की किसी फर्म ने इसे इम्पोर्ट करके रीपेक किया है।  बड़े ही समझदार और दूरदर्शी व्यापारी मालूम पढ़ते है।  'लास (एंजिलिस)' होने की कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ी।  अलादीन का  जिन्न  अगर माल नहीं बेच सका तो शंकर भगवान के नाम से तो  लोग खरीद ही लेंगे और अगर शंकरजी भी काम नहीं आये तो अमेरिका का नाम तो है ही। अमेरिका के नाम पे तो हमारे लोग सड़ी हुई 'मूमफली' को भी पिस्ता समझके खाने को तैयार रहते है।  वैसे " क्या हुक्म मेरे आका " की जगह "ॐ मेरे आका" सुनना फनी सा नहीं लगता ?   जैसे जिन्न वाराणसी या उज्जैन में आकर बस गया हो।  










Friday, February 7, 2014

गुलाबी गेंग

आज एक पुराना कोटेशन याद आगया,  Man loves little and often,woman much and rarely.... .प्रसंग ये था कि आज से वैलेंटाइन वीक शुरू हो गया है।मेरे घर के पास गुलदस्तों की दुकाने है लाइन से काफी सारी सो में भी गुलाब के फूल लेने वंहा रुक गया। फूलों कि दुकानो पे लड़के- लड़कियां ऐसे टूट रहे थे जैसे गुरूद्वारे के लंगर में मुफ्त का खाना बट रहा हो। 
  एक ख़ास बात नोटिस की कि ज़्यादातर  लड़कियां पीला गुलाब ले रही थी ( पीला गुलाब मतलब दोस्ती ) और लड़के सभी लाल गुलाब ले रहे थे ( लाल गुलाब मतलब प्यार )।  घर पे आकर बीबी को ये ऑब्जरवेशन सुनाया तो बोली " क्योकि लड़कियों की नज़रों में  फ्रेंडशिप ज्यादा इम्पोर्टेन्ट है"।"और लड़कों के लिए दोस्ती वेटिंग का टिकट है जो कन्फर्मेशन की उम्मीद से खरीदा जाता है , जो कन्फर्म नहीं हुआ तो दूसरी ट्रैन पकड़ लेंगे"।   

पिराक लोर नेर्टींन

हिंदीभाषी प्रान्त से होने और हिंदी प्रेमी होने की वजह से  हिंदी की भाषागत् , मात्रा या  व्याकरण की गलतियों पर मेरी नज़र ज़रा ज्यादा ही जाती है।  10 दिन अहिंदीभाषी शहरों में घूमा तो ये देखा -






एक प्रसिद्द मंदिर के प्रवेश द्वार पर ये बोर्ड  लगा था -



लेकिन सबसे ज्यादा कौतूहल शौचालयो के ऊपर लगे बोर्ड्स ने पैदा किया।सारे शौचालयों पे " पिराक लोर  नेर्टींन " लिखा था।  थोडा विचारमंथन किया तो समझ आया कि क्या आशय है  "  पिराक लोर  नेर्टींन  " से







Thursday, February 6, 2014

बूढी कहानियां

एक परिचित ने कल दो कहानियाँ सुनाई।  भाव यथावत है लेकिन मैंने दोनों को संक्षिप्त कर दिया है।  

कहानी - 1 

गराज के बराबर से बने कमरे में वो बूढ़ा जंग लगे लोहे के पलंग पर लेटे-लेटे  सारी रात खांसता रहता था। घर के लोग उसको कोसते और उसके सिधर जाने का रास्ता देखते थे। एक दिन बूढ़ा गुज़र गया। घर के लोगों ने उस रात चेन की नींद सोये।  रात भर कोई खलल नहीं और कोई शोर नहीं। अगली सुबह उठे तो पाया कि रात को चोरो ने पूरा घर साफ़ कर दिया।  

कहानी - 2 

बहू और बेटे ने बूढ़े को धक्के देकर घर से निकाल दिया। बूढ़े ने सिर्फ एक शाल उठायी और उसे लपेट कर घर से बहार जाने लगा।  पोता दौड़कर सामने खड़ा हो गया और बोला " दादाजी आप ये शाल नहीं ले जा सकते "। पोते ने शाल के दो टुकड़े किये और आधा टुकड़ा दादा से छीन के घर में ले आया।  
माँ ने पूछा " अरे ये चीथड़े -चीथड़े हुई शाल हमारे किस काम की बेटा ?? 

बेटा बोला " माँ , जब पापा घर से जाएंगे तो उनको काम आएगी।    


Saturday, February 1, 2014

HIGHWAY (2014): MUSIC REVIEW




ऐसा लगभग हर बार होता है , ए  आर रहमान की कंपोज्ड फ़िल्म का म्यूजिक रिलीज़ होता है ,  हम पहली दफे  गाने सुनते है और सोचते है ' यार इस बार रहमान चूक गये  ,  क्या तो भी गाने बनाये है ' ' रहमान में अब वो रोज़ा रंगीला वाली बात नहीं रही'।  रहमान के पक्के से पक्के दीवाने भी इस फिनोमिना से नहीं बच पाते। ये हर बार सबके साथ होता है , चाहे "ताल" हो "गुरु" हो " जाने तू या जाने ना " हो या फिर " रॉकस्टार " हो।   रहमान का म्यूजिक पहली बार बेतुका और अजीब ही  लगता है।  लेकिन जैसे जैसे हम सुनते जाते है वैसे वैसे रहमान की  कम्पोज़िशंस का जादू चढ़ता जाता है।  और फिर वो कम्पोज़िशंस  हमारी परमानेंट ट्रैक लिस्ट में शामिल हो जाती  है।  रहमान प्रिडेक्टिबल नहीं है , इसीलिए उनका हर नया एल्बम उनके संगीत के नए आयामों को खोलता है।  रहमान खुद इस बात को स्वीकार करते है कि कंपोजर के तौर पर वो हर ३ साल में खुद को नया और अलग पाते है।

21 फेब्रुअरी को रिलीज़ होने वाली  हाईवे इम्तिआज़ अली के द्वारा निर्देशित फ़िल्म है जिसमे ए  आर रहमान ने म्यूजिक दिया है और इरशाद कामिल ने गानो के बोल लिखे है।  इसके पहले रहमान इम्तिआज़ और इरशाद  की त्रिमूर्ति २०११ में रॉकस्टार में साथ आयी थी जिसके सारे गाने सूपर हिट थे।  ज़ाहिर  सी बात है कि हाईवे के संगीत को लेकर लोगो कि उम्मीदें बहुत ऊँची थी और रहमान इम्तिआज़ और इरशाद की ये तिकड़ी  अपने मुरीदों की उम्मीदों पर सौ फीसदी खरी उतरी है ।  हाईवे का म्यूजिक 24 जेनुअरी को रिलीज़ हो गया था लेकिन उसका रिव्यु लिखने के पहले ये ज़रूरी था कि फ़िल्म की कहानी के बैकड्रॉप में रहमान कि कम्पोज़िशंस का बेसिक आर्किटेक्ट समझ लिया जाए।

इम्तिआज़ अली नई पीढ़ी के फ़िल्मकार है , 'लव आजकल' 'जब वी मेट' और  ' रॉकस्टार'  देखकर ये बात समझ आजाती है कि उन्हें आज पीढ़ी के टेस्ट और रुझान कि ज़बरदस्त समझ है साथ ही उन्हें  अपने कंपोजर से सर्वश्रेस्ठ म्यूजिक निकलवाने में भी महारथ हांसिल है।  हाईवे को लेकर इम्तिआज़ शुरू से क्लियर थे कि रहमान इसके लिए अपरिहार्य है।  इम्तिआज़ अली को भी ये पता है कि अगर कोई संगीतकार जेन -X के लिए सबसे मुफीद है तो वो रहमान ही है।  हाईवे के संगीत की एक और खास बात है कि इसमें सिर्फ एक गाना सुनीधि चौहान जैसी स्थापित और पुरानी गायिका ने गाया है , बाकी सारे गाने यंग लड़कियों ने गाये है।  " नूरां सिस्टर्स" " ज़ेब " "जोनिता गांधी" "स्वेता पंडित " " सुवी  सुरेश "  " लेडी काश और क्रिसी " ये सब लड़कियां 'यू ट्यूब' और कोक स्टूडियो जनरेशन की कलाकार है। ये सब सिंगर्स आज की जनरेशन को रिप्रेजेंट करती है।  पुरे एल्बम में सिर्फ 2 गाने मेल वॉइस में है और दोनों रहमान ने खुद गाये है ,  बाकि सारे गाने फीमेल वॉइस में है साफ़ है कि फ़िल्म आलिया भट्ट के किरदार के आसपास घूमती है।  एल्बम में कुल 9 साउंड ट्रैक्स है जिसमे से एक " पटाखा गुड्डी " मेल और फीमेल वर्शन में है जबकि " इम्प्लोसिव साइलेंस " में सिर्फ आलाप है।

माही वे - माही वे गाना इस एल्बम कि सबसे सरल कम्पोजीशन है इसलिए ये गाना पहली बार सुनकर ही  अच्छा लगने लगता है। इस गाने में रहमान ने इंट्रूमेंट्स का उपयोग भी बहोत कम किया है।  इरशाद कामिल ने इस गाने को मुखड़ा -अंतरा की गीत शैली में न लिखकर नज़्म शैली में लिखा है।  रहमान की रूहानी और हाई पिच वाली गायकी इस गाने को सूफियाना टच देती है। इस गाने के शुरू में गिटार फैमिली के एक इंस्ट्रूमेंट उकुलेले का उम्दा यूज़ किया गया है।  रिलीज़ होने के एक दिन के भीतर ही ये गाना I-TUNES में नंबर दो पर आ गया था।

कहाँ हूँ  मै - ये गाना कनाडा बेस्ड आर्टिस्ट जोनिता गांधी ने गाया है जो इसके पहले चेन्नई एक्सप्रेस का टाइटल सांग भी गा  चुकी है।  जोनिता गांधी, यू ट्यूब पे मशहूर पियानिस्ट  आकाश गांधी के साथ बॉलीवुड गानो के कवर वर्शन गाती है और इनके विडिओज़  लाखों लोगों द्वारा देखे जाते है। आजकल जोनिता सोनू निगम की कॉन्सर्ट ट्रूप का हिस्सा है.   जोनिता कि आवाज़ सुनकर लगता है कि जैसे वो एक ओपेरा सिंगर है जिसे  भारतीय शास्त्रीय संगीत की भी गेहरी समझ है।  कहाँ हूँ मै गाना जोनिता कि सधी हुई और ताज़ा आवाज़ के कारण आपको एक अलग दुनिया में ले जाता है।  एक ऐसी दुनिया जहाँ पहुच  के मन में यही ख्याल आता है कि " कहाँ हूँ मै ".

पटाखा गुड्डी( फीमेल वर्शन )  - "पटाखा गुड्डी " पंजाब के लोकगीत शैली में कंपोज्ड एक बेहतरीन गाना है जिसे गाने के लिए " नूरां बहनो " से बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता था। ज्योति और सुल्ताना नूरां पंजाबी सूफी गायन में उभरता नाम है , पिछले साल COKE MTV STUDIO में परफॉर्म करने के बाद से  इन्हे राष्ट्रीय ख्याति मिली और अब रहमान के लिए गाकर इन्होने अपने लिए संभावनाओ के नए द्वार खोल लिए।पंजाबी लोक गीत की  बीट्स और उसके साथ नूरां सिस्टर्स की ज़ोरदार आवाज़ मिलकर इस गाने को एक अलग एहसास देते है।  गाने में बांसुरी का भी बेहद खूबसूरत उपयोग लिया गया है जो रहमान के रेगुलर फ्लूटिस्ट नवीन कुमार ने बजायी है। मेरे हिसाब से इस गाने का असली पंच गाने के आखिरी में रहमान के द्वारा निकाली  आवाज़ है जो इस फॉल्क सांग को मॉडर्न और अरबनाइट टच  देती है।

सुहा साहा - ये एक लोरी है जिसे आलिया भट्ट और ज़ेब बंगाश ने गाया है।  गाने के बोल शायद पंजाबी में है।  सुहा साहा का मतलब होता है " लाल खरगोश" । ज़ेब और हानिया पाकिस्तान की मशहूर गायिकाओ की जोड़ी है , ज़ेब मूलतः पश्तून है और उनकी आवाज़ में उम्र और वज़न दोनों है , उम्र इसलिए है क्योकि वो 8 साल की उम्र से गा  रही है और अब एक मंझी फनकार बन गयी है।   ज़ेब और हानिया २००९ और २०१० में COKE STUDIO में परफॉर्म कर चुकी है।  मगर इस गाने में ज़ेब से ज्यादा प्रॉमिनेंट आलिया भट्ट है , जिन्होंने पहली बार गायकी में हाथ आज़माया है।  ये रहमान का है विज़न है जिसने ये  जान लिया कि इस लोरी में यथार्थ और प्रभाव लेन के लिए आलिया भट्ट ही सही है।  ये लोरी रहमान के पुराने गानो की याद दिलाती है।  केबा जर्मिआह की गिटार  STRUMMING कमाल की  है।

हीरा - ये इस एल्बम का मेरा सबसे पसंदीदा गाना है , गाने के लफ्ज़ जानने के बाद से और ज़यादा अच्छा लगने लगा।  ये असल में  "कबीर की  साखिया " से लिए गए ३ दोहे है। रहमान रूहानी और सूफियाना अल्फ़ाज़ों को जिस नाज़ुकता से और जिस नफ़ाज़त से कंपोज़ करते है वो कोई और नहीं कर सकता।  पंद्रहवी शताब्दी में लिखे  दोहे को इक्कीसवी सदी  के एक ऑस्कर विजेता कंपोजर ने  संगीतबद्ध किया  है  और एक ऐसा गाना बना है जो बरसो सुना जाएगा। श्वेता पंडित तेलगु फिल्मो की गायिका है और रहमान के लिए पिछले ५-६ सालो से गा रही है।  गाने में वायलिन जिस तरह से बजा है वो जगजीत सिंह की ग़ज़लों की याद दिलाता है।  ये दोहे अगर जगजीत सिंह से गवाए गए होते तो ये कम्पोजीशन अमर हो जाती।

पटाखा गुड्डी( मेल वर्शन )- पटाखा गुड्डी मेल वर्शन रहमान ने खुद गया है।  फीमेल वर्शन जहाँ  लोक संगीत बेस्ड है , मेल वर्शन में क़व्वाली का टच है।  रहमान की ट्रेडमार्क " प्रोग्रेसिव कोर्डिंग " का एक बेहतरीन मुज़ाहिरा है ये गाना।  बेस गिटार और पावरफुल बीट्स इस गाने की एनर्जी को कॉम्पलिमेंट करते है।  गाना सुनकर साफ़ लगता है कि पंजाबी अल्फ़ाज़ों के इस गाने को सही तलफ्फुज़ से गाने के लिए रहमान को कितनी मेहनत करना पढ़ी होगी।

तू कुजा मन कुजा -  इरशाद कामिल जालंधर यूनिवर्सिटी से उर्दू पोएट्री में पीएचडी है।  उर्दू के अतिरिक्त इन्हे फ़ारसी और अरबी की भी अच्छी समझ है।  इरशाद ने अमीर खुसरो की फ़ारसी - बृज रचनाओ से प्रेरित होकर " रांझणा " में 'तुम मन शुदी लिखा था " और ' रॉकस्टार ' में  कुरान से " कुन फाया कुन " भी उठाया था।  इस बार फिर उन्होंने फ़ारसी से " तू कुजा मन कुजा " लिया है जो दरअसल खुदा से इबादत में कहा जाता है और जिसका मतलब है  " तुम कहाँ और  मै कहाँ" ।  शुरू के इन चार अल्फ़ाज़ों के अलावा ये गाना ठेठ हिंदी है।  गाना सुनकर लगता है कि ये कोई प्रार्थना है।  सुनिधि चौहान ने अर्से बाद रहमान के लिए गया है।  सुनिधि की गायकी एफर्टलेस है , हाई पिच पे बने इस गाने को एक जैसी ग्रेविटी के साथ गाना सिर्फ सुनिधि चौहान के बस की  ही बात है।

वाना मैश अप ? -  हाईवे के बाकी सारे गाने अगर पूर्व है तो ये गाना पश्चिम है। ये गाना फ़िल्म में आलिआ भट्ट की अप्वर्डली मोबाइल लाइफस्टाइल को पोट्रे करता है।  लेडी काश और क्रिसी सिंगापुर बेस्ड रैपर और कंपोजर है।  इन्होने " रोबोट "  फ़िल्म में  " नैना मिले " और इसके तमिल/तेलुगु वर्शन भी गाये है।  इस किस्म के गानो में एक अलग किस्म का ऐ आर रहमान निकल के सामने आता है , ये गाना रहमान के तकनीकी कौशल का नतीज़ा है। इस गाने की तीसरी गायिका सुवी सुरेश है जो साउथ में MTV के विकल्प SS म्यूजिक की खोज है।

इम्प्लोसिव साइलेंस - इम्प्लोसिव साइलेंस इंस्ट्रुमेंटल ट्रैक है। नाम के ठीक उलट इस गाने में एक अजीब सा शोर है , ये शोर बाहरी दुनिया का नहीं है भीतर का है।  अंदर की बैचैनी और छटपटाहट की आवाज़ है ये ट्रैक।  बीच बीच में कुछ आलाप है जिन्हे जोनिता गांधी ने किया है।

"हाईवे" इम्तिआज़ अली का  एम्बीशियस प्रोजेक्ट है जिसमे संगीत का बड़ा हिस्सा है।  रहमान ने अपना काम बखूबी किया है और फ़िल्म का संगीत रहमान की प्रतिष्ठा के अनुरूप है।  रहमान का म्यूजिक एकदम से क्लिक नहीं करता।  नसरीन मुन्नी कबीर कहती है रहमान का संगीत एक कड़वी दवाई कि तरह है जो खाते वक़्त तकलीफ देता है लेकिन फिर सारी ज़िन्दगी असर करता है।  पिछले साल " जब तक है जान " के साथ " खिलाडी 786 " आयी थी , " जब तक है जान " के गाने आज भी  जहाँ सुनने को मिलते है लोग ठहर जाते है वंही " खिलाडी 786 " के गानो पे लोगो ने शादियों  में खूब डांस किया और फिर भूल गए।  शादी की घोड़ी और लम्बी रेस के घोड़ों में येही अंतर है।













HEERA SOHI SARAHIYE : हीरा सोई सराहिये

हीरा सोई सराहिये
सहे घनन की चोंट।
कपट कुरंगी मानवा
परखत निकरा खोट ।।
( Admire the diamond that can bear the hits of a hammer. Many deceptive preachers, when critically examined, turn out to be false.) 

हीरा तहां न खोलिए
जहाँ कुंजड़ों की हाट ।
सहजै गांठी बांधके
लगिये अपनी बांट ।।
( Don't open your diamonds in a vegetable market. Tie them in bundle and keep them in your heart, and go your own way.) 

हीरा पारा बाज़ार में
रहा छार लपटाए ।
केतिहि मूरख पचि मुये
कोई पारखी लिया उठाये ।।

(A diamond was laying in the street covered with dirt. Many fools passed by. Someone who knew diamonds picked it up)