कुछ नहीं सूझ रहा क्या करूँ तो ब्लॉग लिख रहा हूँ। मेरे काका चले गए आज , गिरीश अंकल बोलते थे हम उनको। जब छोटा था तब दिवाली पे चकरी और अनार में सामने खड़े रहकर आग लगवाते थे , दशहरे पे रावण दिखाने ले जाते थे । होली पे रंग लाकर देते थे , गाँव की जतरा में लेकर जाते थे और जो जिद करो वो चीज़ दिला देते थे , पापा की पिटाई में कई बार बचाने आते थे।
हमारे घर की शादियों में जब हम सब परिवार वाले गाने- बजाने बैठते थे तो गिरीश अंकल से दो ही गानों की विशेष फरमाइश की जाती थी। एक था बॉबी फिल्म का 'मै शायर तो नहीं' और दूसरा नरेन्द्र चंचल का 'यारा हो यारा इश्क ने मारा' । ये दोनों गाने वो अपनी signature style में गाते थे और मै उनको हारमोनियम पे संगत देता था
आज सुबह से मन ख़राब था , पापा का फ़ोन आया था की मिलने आजाओ अब भरोसा नहीं। सुबह 9 बजे घर से गाँव के लिए निकला , रास्ते भर गिरीश अंकल के बारे में सोचता रहा , कितना प्रभाव है उनका मेरी personality पर। रोज़ shave बनाना , music सुनना, अच्छा खाना खाना , सलाद और मूली खाने की आदत और इन सबके ऊपर हमेशा खुश और बेफिक्र रहना , ये सब मैंने गिरीश अंकल से सीखा। सफाई के लिए paranoid थे। इतने उतार -चढ़ाव आये उनकी ज़िन्दगी में लेकिन वो कभी टूटे नहीं। उन्होंने कभी परवाह नहीं की , बस चलते गए। शरीर से 2 साल से बीमार थे लेकिन मन से आखिरी तक बीमार नहीं हुए।
बस यही सोचता सोचता बोझिल मन से जा रहा था की आज शायद आखिरी बार उनको देखूं लेकिन मेरे गाँव पहुचने के एक घंटे पहले वो चले गए। खुद को इतना बेचारा और unfortunate मैंने आजतक कभी महसूस नहीं किया। काश मै सुबह जल्दी निकल जाता। एक घंटे की ये मेरी अबतक की चुकाई सबसे बड़ी कीमत है।
गिरीश अंकल का मेरे जीवन में बड़ा stake था , एक बड़ा हिस्सा था मेरे अन्दर उनका भी। आज वो अपने साथ मेरा वो हिस्सा भी लेकर चले गए। ईश्वर उनकी आत्मा को बैकुंठ दे
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