Friday, September 20, 2013

ज्ञान

" जो चींटी मारते है वो अगले जन्म में चींटी बनते है ,
 जो  छिपकली को मारते है वो अगले जन्म में छिपकली बनते है , जो जिसको मारता है वो अगले जन्म में वोही बनता है , समझ गए सब "

मेरी भतीजी अप्पू बोलती है "अच्छा तो इसका मतलब है की आपने लड़के को मारा था इसलिए आप लड़का बने और
 मैंने लड़की  को मारा था इसलिए मै लड़की बनी " 

Thursday, September 12, 2013

अफीमचियों की बस्ती


जर्मन इक्नामिस्ट फिलास्फर कार्ल मार्क्स ने बड़े फेमस्ली कहा है " Die Religion .. ist das Opium des Volkes "  मतलब Religion is the Opium of the People धर्म लोगो का नशा है।  अफीम का नशा
फिल्म ऒह माय गॉड के  क्लाइमेक्स में परेश रावल से  धर्मगुरु (मिथुन चक्रबोर्ति ) यही बोलता है कि लोग ज्यादा दिन हमारे बिना नहीं रह पाएँगे क्योकि धर्म इन लोगो का नशा है। अफीमची भी कई प्रकार के है, छोटे अफीमची बड़े अफीमची , कट्टर अफीमची , पागल अफीमची, फनाटिक अफीमची , चतुर अफीमची , बेवकूफ अफीमची। इन सबके ऊपर है  अफीमचियों को नचाने वाले मदारी और अफीम के सप्लायर। कुछ लोग अपनी अफीम की तलब को कस्टमाइज कर लेते है।  एक मेरा  दोस्त है जो  बुधवार  को नॉन-वेज नहीं खाता क्योकि उस दिन वो गणेशजी के मंदिर जाता है   ।  एक और है वो सोमवार को दारू नहीं पीता  क्योकि सोमवार शंकरजी का दिन है। इन अफीमचियों ने अपनी तलब को कस्टमाइज कर लिया है।

आजकल McD का एक एड आता है उसमे भी यही दिखाते है कि Tuesday होने के कारण अगर आप  चिकन मसाला  बर्गर नहीं खा सकता तो McD पे Veg मसाला बर्गर भी है।  क्योकि McD वाले भी जानते है कि इंसान बर्गर खाना छोड़ सकता है पर अफीम खाना नहीं।लोग हैरान होते है कि कैसे लाखो करोडो लोग एक ठरकी कथा वाचक बाबा के ऐसे अंधे भक्त हो सकते है  , जवाब है अफीम की तलब , सालो से जिन लोगो को धर्म की अफीम की लत है उन्हें क्या करना कि बाबा ठरकी है , उन्हें अफीम की आदत है और उनकी पसंद की अफीम बाबा देता है। इसलिए डरते है सारे नशेडी कि बाबा  की दुकान बंद हो गयी तो उनको अफीम कौन खिलाएगा।  और क्या पता फिर  अफीम में नशा  ही ना रहे।

गणपति की धूम है अभी, सुबह से जो भोपू बजना शुरू होते है तो फिर आधी रात के बाद ही रुकते है  , घर के पास एक झांकी से अभी शाम को एलान हो रहा था कि जिस  किसी सज्जन को तम्बोला खेलना है वो शीघ्र आजाए क्योकि आरती के बाद तम्बोला खेला जाएगा।

सब अफीमची है।

गणपति बप्पा मोरिया गणपति बप्पा मोरिया
अब तो भोपू बंद करदो सारा देश सोरिया


Tuesday, September 10, 2013

तुलसीजी में अंडा

एक मज़ेदार बात हुई।  3 दिन घर बंद था क्योकि सब बाहर गये थे , कल वापस आये तो देखा बालकनी में रखे तुलसी के गमले में कबूतर ने ( precisely कबूतरनी ने ) अंडा दे दिया है।

बड़ा धर्म-संकट है अब , बीबी बोलती है अंडा हटाओ तुलसीजी को जल  कैसे देंगे , हमारी तुलसीजी मुरझानी नहीं चाहिए।
 अंडा हमारे लिए अंडा है , 50 रूपए में एक दर्जन लेकिन कबूतरनी के लिए सिर्फ अंडा नहीं है। लेकिन  तुलसीजी भी कोई बगीचे का पौधा नहीं है, गुलाब या गेंदा जैसे।

अंडे को छेड़ा तो कबूतरनी का miscarriage हो सकता है और नहीं छेड़ा  तो फिर तुलसीजी को जल कैसे चढ़ेगा।  एक तरीका ये हो सकता है कि एक टेम्पररी घोंसला बनाया जाये और उसमे अंडे को शिफ्ट किया जाए



Saturday, September 7, 2013

गिरीश अंकल

कुछ नहीं सूझ रहा क्या करूँ तो ब्लॉग लिख रहा हूँ।  मेरे काका चले गए आज , गिरीश अंकल बोलते थे हम उनको।  जब छोटा था तब दिवाली पे चकरी और अनार में सामने खड़े रहकर आग लगवाते थे , दशहरे पे रावण दिखाने  ले जाते थे । होली पे रंग लाकर देते थे , गाँव की जतरा में लेकर जाते थे और जो जिद करो वो चीज़ दिला देते थे , पापा की पिटाई में कई बार बचाने आते थे। 

हमारे घर की शादियों में जब हम सब परिवार वाले गाने- बजाने बैठते थे तो गिरीश अंकल से दो ही गानों की विशेष फरमाइश की जाती थी।  एक था बॉबी फिल्म का 'मै शायर तो नहीं' और दूसरा नरेन्द्र चंचल का 'यारा हो यारा इश्क ने मारा' । ये दोनों गाने वो अपनी signature style में गाते  थे और मै उनको हारमोनियम पे संगत देता था

आज सुबह से मन ख़राब था , पापा का फ़ोन आया था की मिलने आजाओ अब भरोसा नहीं।  सुबह 9 बजे घर से गाँव के लिए निकला , रास्ते भर गिरीश अंकल के बारे में सोचता रहा , कितना प्रभाव है उनका मेरी personality पर।  रोज़ shave बनाना , music सुनना, अच्छा खाना खाना , सलाद और मूली खाने की आदत और इन सबके ऊपर हमेशा खुश और बेफिक्र रहना , ये सब मैंने गिरीश अंकल से सीखा। सफाई के लिए paranoid थे।    इतने उतार -चढ़ाव आये उनकी ज़िन्दगी में लेकिन वो कभी टूटे नहीं। उन्होंने कभी परवाह नहीं की , बस चलते गए।  शरीर से 2 साल से बीमार थे लेकिन मन से आखिरी तक बीमार नहीं हुए। 

बस यही सोचता सोचता बोझिल मन से जा रहा था की आज शायद आखिरी बार उनको देखूं  लेकिन मेरे गाँव पहुचने के एक घंटे पहले वो चले गए।  खुद को इतना बेचारा और unfortunate मैंने आजतक कभी महसूस नहीं किया। काश मै सुबह जल्दी निकल जाता।  एक घंटे की ये मेरी  अबतक की  चुकाई सबसे बड़ी कीमत है।  

गिरीश अंकल का मेरे जीवन में बड़ा stake था , एक बड़ा हिस्सा था मेरे अन्दर उनका भी।  आज वो अपने साथ मेरा वो हिस्सा भी लेकर चले गए।  ईश्वर उनकी आत्मा को बैकुंठ दे

Wednesday, September 4, 2013

HAPPY TEACHERS DAY

 
उम्दा शायर है  एक ,कश्मीरीलाल ज़ाकिर।  लिखते है , " मुझमे जो कुछ अच्छा है सब उसका है , मेरा जितना चर्चा है सब उसका है "।  अपने सभी शिक्षकों  के सन्दर्भ में मै ज़ाकिर साब की इस बात से सौ फ़ीसदी इत्तेफाक़ रखता हूँ।  मेरे सारे गुण उनके है जिन्होंने मुझे पढाया और सारे अवगुण मेरे अपने कमाए है। 
 
हर मुकम्मिल  इन्सान के पीछे कोई औरत -आदमी भले हो न हो , एक अच्छा शिक्षक ज़रूर होता है। अर्जुन होने के लिये द्रोणाचार्य का होना  indispensable है।  एकलव्य होने के लिये भी द्रोणाचार्य की ही प्रेरणा लगती है। 
 
चाणक्य बोलते थे " शिक्षक को साधारण मत समझना , विकास और प्रलय उसकी गोद में खेलते है " । सही है बिलकुल,  इसीलिए कुछ लोग इमारतें बनाते  है और कुछ उन इमारतों में हवाईजहाज़ टकराते है।  गंगोत्री शिक्षक ही है दोनों किस्म के लोगो की।  दूसरा वाला demagogue है लेकिन है तो गुरु ही ना ? अफज़ल गुरु
 
इतवारू (मोटू )
अभी एक दिन खुद को एक स्कूल  campus   में पाया , । गया किसी और काम से था लेकिन दो एकम दो और अ अनार का सुनके खुद को रोक नहीं पाया।ये स्कूल जिस राज्य में है , आजकल उसका चप्पा -चप्पा नाप रहा हूँ।  जिस रास्ते पर जाओ बड़े बड़े विज्ञापन नज़र आते है सरकार और नेताओ का गुणगान करते हुए। जंगलों के बीच एक गाँव के रास्ते पे एक होर्डिंग पे लिखा था कि राज्य की growth रेट National Average से ज्यादा है , पता नहीं किसको दिखाने को लगाया था क्योकि लोकल लोग तो अभी ABC तक ही  नहीं पहुंचे है, GDP तो दूर की कौड़ी है। 
 
माधवी 
बरहाल बात  स्कूल की , बच्चे ठीक वैसे थे जैसे किसी बड़े CBSE /ICSE स्कूल के होते है , उतने ही मुखर , उतने ही खुशनुमा और शरारती , सम्भावनाओ ने भरे कच्ची मिट्टी के घड़े। आसमानी नीले रंग की यूनिफार्म और आँखों में पूरा आसमां।  ज्यादा ख़ुशी ये देखकर हुई कि लड़कियां ज़्यादा थी।  Economics  की भाषा में बोले तो DEMAND SIDE एकदम दुरुस्त थी। बरसते पानी में पढने आने को तैयार बच्चे और बच्चियां।  अब्दुल कलाम और कल्पना चावला बनने को लालायित बच्चे -बच्चियां। 
 
     
Problem SUPPLY SIDE पे थी , बदबूदार कमरा , कच्चा फर्श , और बिजली भी नहीं , जबकि ये राज्य अपने विज्ञापनों में बखान करता है कि राज्य की बिजली दुसरे राज्यों को रोशन कर रही है।  और infrastructure से कंही ज्यादा dishearten करने वाली बात ये कि trained और  qualified teachers भी नहीं।  class 3 के बच्चो को पढ़ा रहा नौजवान खुद बारहवी पास स्थानीय था , जिसे अतिथि शिक्षक यानी guest faculty के रूप में 120 रूपए प्रतिदिन पे  adhoc रखा गया था क्योकि स्कूल में permanent teacher की पोस्टिंग नहीं हुई थी।  और मैंने जब उससे अंग्रेजी में पूछा  कि WHAT IS THE NAME OF UR STATE तो उसका जवाब था INDIA.   क्लास में  गाँधीजी  , नेहरूजी और इंदिरा गाँधी की तस्वीर भी  लगी थी , आंसू टपकते होंगे रात में उस तस्वीर से। 
 
सुमन 
मेरी बेटी अभी CLASS -1 में भी नहीं पहुची है , उसकी क्लासरूम air-conditioned है , उसको Multi -Media gadgets से  बाराखडी सिखाई जाती है और उसकी classteacher flawless अंग्रेजी में बोलती है। उसके लिये संभावनाओ के सारे दरवाज़े खुले हुए है लेकिन माधवी , इतवारू (मोटू ) और सुमन    का क्या दोष ???? ये सिर्फ इसलिये अच्छी शिक्षा नहीं पा सकते क्योकि इनके पेरेंट्स AFFORD नहीं कर सकते और उससे ज्यादा शर्मनाक बात ये कि सरकार भी ये सुनिश्चित नहीं कर रही। 
 
कितना घोर अपराध है ये देश की आनेवाली नस्लों के साथ , और कैसी विडम्बना है ये कि हमारे देश में शिक्षा की गुणवत्ता मतलब QUALITY इस बात पर depend करती है कि कोई कितना afford कर सकता है।  Right to Education is nothing but a fuckin cliche . 
 
HAPPY TEACHERS DAY............................

मेरी बेटी का स्कूल 

Monday, September 2, 2013

दुनिया जाए तेल लेने


तेल ने दुनिया का तेल निकाल रक्खा है।  अमरीका तेल के लिये पैसा  बहा रहा है , सीरिया खून बहा रहा है और हमारा देश तेल के लिए आंसू बहा रहा है। फिनांस मिनिस्टर सुबह -शाम चीखे  जा रहे है की  हमारा  रूपया  तेल की चिकनाई से  फिसल -फिसल के पाकिस्तान के रूपए से भी ज़्यादा  फिसड्डी हो गया है   लेकिन फिर भी  पेट्रोल पंप गुलज़ार है  तेल के प्यासों से, और सड़के हलकान है गाडियो की कतारों  से। किसी को परवाह नहीं कि राजा भोज अब गंगू तेली बनने की कगार पर है। 

 आजकल  टीवी और अख़बारों  में इंडियन इकॉनमी के बारे में इतना कुछ आ रहा है कि मुझे लगता है कि अगर मै अपनी बिल्डिंग के चौकीदार से भी पूछूं तो शायद वो भी मुझे Non Deliverable Forward और Current Account Deficit पे भाषण दे डाले। कितने मज़े की बात है कि जिस बीमारी का इलाज़ हम सबको  पता है हम उसको और बढ़ाये जा रहे है। 4 लोग एक ही इमारत से रोज़ एक ही ऑफिस जाते है , लेकिन सब अपनी -अपनी अलग कार से, फिर ऑफिस में सब  मिलकर देश के बिगड़े इकनोमिक सिनेरियो  पर ग्रुप डिस्कशन करते है।  घर से चार कदम दूर सब्ज़ी मंडी तक कार से जाते है फिर सरकार को सब्जियों के बढ़ते दाम  के लिए कोसते है। 

अभी हिन्दू में एक सज्जन को पढ़ा , प्याज़ के आसमान छूते दामों पे लिखते है कि प्याज़ कोई ऑक्सीजन नहीं है जिसके बिना हम जिंदा नहीं रह सकते , अगर हमने एक महीने प्याज़ खाना बंद कर दिया तो गोदामों में  प्याज़ सड़ने लगेंगे और जमाखोरों को कीमतें कम करना ही पढेगी। कितना सरल उपाय है , और इतना सरल सा मार्केट  डायनामिक्स समझने के लिये आपको इकोनॉमिक्स में PG होना जरुरी नहीं , बस चिकन दो प्याज़ा को थोड़े दिन चिकन NO-प्याज़ा बनाइये और salad में प्याज़ की जगह खीरा खाइए , प्याज़ को अपनी औकात में आने में टाइम नहीं लगेगा  फिर।  ये अलग बात है कि कल मैंने खुद प्याज़ से लबरेज़ सब्ज़ी पकाई क्योकि मेरी बैंक का ATM लगातार रूपया  उगल रहा है और अगर पैसे ख़त्म भी होगये तो मै क्रेडिट कार्ड से प्याज़ खरीद लूँगा।  मेरी कार्ड कंपनी तो  उसको 9 आसान सी EMIs में 'जीरो परसेंट ब्याज और नो प्रोसेसिंग फी' पे कन्वर्ट भी  कर देगी , असली खेल यहाँ छुपा है।  और ये खेल  मेरी बिल्डिंग के चौकीदार को समझ नहीं आना है क्योकि उसके पास ना ATM है ना क्रेडिट कार्ड और वैसे भी  उसने तो  प्याज़ खाना उसी दिन से छोड़ दिया था जब से प्याज़ के दाम 10 रूपए किलो के ऊपर हो गये।  अब वो ये उम्मीद लगाये बैठा है कि सरकार शायद नेशनल फूड सिक्योरिटी बिल में बदलाव कर गेहूं चावल और मोटे अनाज के साथ -साथ आलू प्याज़ और सब्जियां भी 2 रूपए किलो में बाटना शुरू करदे।  जब सरकार पेट्रोल के प्यासे नौकरीपेशा लोगों को पाल सकती है तो उसका ऐसा सोचना ज़रा भी गैर-वाज़िब नहीं।